“एक सामूहिक पत्र के माध्यम
से देश भर के 24 राज्यों से शिक्षाविदों, शिक्षा के मसले पर कार्यरत संगठनों व मंचों, शिक्षक संघों और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों, जमीनी स्तर पर सक्रिय संगठनों, शोधकर्ताओं
और नागरिकों समेत 1400 लोगों ने हस्ताक्षर करके “स्टार्स शिक्षा परियोजना” को तत्काल
प्रभाव से स्थगित करने और व्यापक सार्वजनिक परामर्श-विमर्श के जरिये
वस्तुस्थितियों के ठोस आकलन के के बाद ही इस परियोजना को अंतिम रूप देने की मांग
की।“
नई दिल्ली, 21 जून, 2020: देश भर
के 24 राज्यों से ख्यातिलब्ध 1400 शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, शोधकर्ताओं, शिक्षकों
संघों और
नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों, जमीनी स्तर पर सक्रिय
संगठनों और सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न नेटवर्कों/मंचों
ने विश्व बैंक से भारत में 6 राज्यों में पठन- पाठन के सशक्तीकरण के
लिए प्रस्तावित विश्व बैंक वित्तपोषित स्टार्स (STARS) परियोजना के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी)
को दिये जाने कर्ज को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का आग्रह किया है।
हार्टविग स्कैफ़र, उपाध्यक्ष, दक्षिण एशिया क्षेत्र, विश्व बैंक को लिखे इस सामूहिक पत्र पर शांता
सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, एनसीपीसीआर; मनोज झा, सांसद, राज्यसभा-राष्ट्रीय जनता दल (बिहार); जयति घोष, प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; रितु दीवान पूर्व निदेशक, अर्थशास्त्र विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय; आर
गोविंदा- पूर्व वीसी, न्यूपा; प्रो॰ अनीता रामपाल, दिल्ली विश्वविद्यालय; देविका सिंह, राइट
टू अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट; प्रवीण झा, प्रोफेसर, जेएनयू; नित्या नंदा, निदेशक, काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली; वादा ना
तोड़ों अभियान; राइट टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम; नेशनल कोएलिशन ऑफ एजुकेशन (NCE) इंडिया; अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ (AIPTF); अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ (AISTF); ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर्स ऑर्गनाइजेशन (AIFTO); ओक्स्फैम इंडिया; समेत 1400 लोगों के हस्ताक्षर हैं।
पत्र
में स्टार्स परियोजना के बारे में कुछ
अहम चिंताओं को उठाया गया है जिनमें समाज के हाशिये पर मौजूद वंचित समुदायों और कमजोर वर्गों के बीच शिक्षा
की पहुंच
सुनिश्चित करने के लिए सुधार के ठोस प्रावधानों और किसी मुकम्मल रणनीति का अभाव, शिक्षा
के क्षेत्र में मुनाफे की दृष्टि से संचालित निजी संस्थाओं की अत्यधिक व संभावित भागीदारी
के साथ-साथ निजी-सार्वजनिक साझेदारी पर ज्यादा ज़ोर और
सीखने-सिखाने संबंधी कक्षायी प्रक्रियाओं एवं वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य के सामने
मौजूद मूल चुनौतियों को दरकिनार कर मानकीकृत
मूल्यांकनों को ज्यादा तरजीह देना जैसे अहम सवाल शामिल हैं।
साथ ही, हस्ताक्षरकर्ताओं ने प्रस्तावित स्टार्स परियोजना
पर हुई चर्चा को नाकाफी बताते हुए विश्व बैंक और मानव संसाधन
मंत्रालय से मांग की कि परियोजना को अंतिम स्वरूप देने के पहले इस मसले पर
ज्यादा-से-ज्यादा सार्वजनिक परामर्श गोष्ठियाँ बुलाई जाएँ और लोगों की राय मांगी
जाए।
नागरिक
सामाजिक संगठनों की तरफ से यह सामूहिक
पत्र ऐसे समय में आया है जब पहले से ही खस्ताहाल भारत की शिक्षा
व्यवस्था, कोविड-19 के रूप में आई
वैश्विक महामारी की पृष्ठभूमि में अभूतपूर्व संकट से जूझ रही है। आशंका जताई जा
रही है कि हाशिये पर मौजूद दलित-वंचित-आदिवासी समुदायों समेत सामाजिक असुरक्षा, कमजोर आर्थिक स्थिति और रोजी-रोजगार की समस्या से जूझ रहे असंगठित
क्षेत्र में कार्यरत व्यापक आबादी पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है और इन समुदायों
से आनेवाले बच्चे स्कूल
से भारी संख्या में ड्रॉप-आउट हो सकते हैं। मलाला फंड की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप दुनिया भर में 1 करोड़ लड़कियों के स्कूल से बाहर होने का अनुमान है।
निजी संस्थाओं की बड़े पैमाने पर संभावित भागीदारी
चिंताजनक है
विश्व
बैंक द्वारा दिये जा रहे इस कर्ज के संदर्भ में उपलब्ध दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि स्टार्स (STARS) परियोजना के लिए प्रस्तावित कुल पैसे में विश्व
बैंक द्वारा महज 500 मिलियन डॉलर ही दिया जाएगा और शेष 85 फीसदी राशि का भुगतान भारत सरकार और संबंधित राज्य
सरकारों द्वारा
किया जाएगा।
ऐसे में परियोजना
में निजी संस्थाओं द्वारा
सार्वजनिक धन के संभावित
दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए
इस पत्र के जरिये ऐसी किसी भी संभावना के मद्देनजर इस कर्ज पर रोक लगाने व उपयुक्त
प्रशासनिक तंत्र की स्थापना की मांग की गई है। साथ ही, सरकारी स्कूल प्रणाली को मजबूत करने और शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के तहत उल्लिखित प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की मांग की गई
है।
राइट टू एजुकेशन
(आरटीई) फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीश राय ने कहा, “भारत सरकार और विश्व बैंक को एक आत्मनिर्भर, सशक्त, न्यायसंगत और नवाचारपूर्ण सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के निर्माण का लक्ष्य
रखना चाहिए। स्ट्रेंथेनिंग
टीचिंग लर्निंग एंड स्टेट्स फॉर स्टेट्स
(STARS) परियोजना अपने वर्तमान स्वरूप
में इस मकसद को पूरा करने में विफल है। बल्कि यह स्कूली शिक्षा व्यवस्था के निजीकरण को ही बढ़ावा देगा। ”
मार्च 2020 में, मानव संसाधन
विकास मंत्री
रमेश पोखरियाल
निशंक ने संसद को सूचित किया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत में प्राथमिक शिक्षा
के निजीकरण
की कोई योजना नहीं बना रही है (http://164.100.47.194/Loksabha/Questions/QResult15.aspx?qref=14792&lsno=17)। हालांकि, इस परियोजना में निजी संस्थानों के साथ
साझेदारी (पीपीपी) संबंधी प्रस्ताव समेत विशेष रूप से सरकारी स्कूलों को हस्तांतरित करने, स्कूल वाउचर प्रदान करने, प्रबंधन फर्मों के जुड़ाव की योजना और मूल शैक्षिक कार्यों की आउटसोर्सिंग आदि का खूब जिक्र है। गौरतलब है कि शिक्षा की मौजूदा स्थिति का स्वतंत्र रूप से
मूल्यांकन करने वाले “असर” (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट ASER) या विश्व बैंक की डब्ल्यूडीआर 2018 (WDR 2018 ) और बॉम 2018 Baum (2018) जैसी रपटें स्पष्ट रूप से बताती हैं कि निजी स्कूलों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) वाली व्यवस्था न केवल बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराने में विफल है बल्कि मौजूदा हालत का फायदा उठाते हुए मुनाफा कमाना ही इनका
ध्येय है।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की वरिष्ठ सदस्य किरण भट्टी ने कहा: “राज्य समर्थित निकायों के क्षमतावर्द्धन के लिए बुनियादी सुधार
के बिना, सिर्फ़ प्रौद्योगिकी व तकनीक पर ज्यादा ज़ोर देने भर से और
शिक्षा में सुधार के लिए निजी संस्थाओं के हाथों में जनता की गाढ़ी कमाई
का पैसा सौंप देने वाली नीति शैक्षिक सुधार
कार्यक्रम को लागू करने में सफल नहीं हो सकती। और न ही संज्ञानात्मक क्षमताओं
की आकलन –विधियों में सुधार ले आने से माप को सुधारने से सीखने में सुधार होता है। परियोजना
का मुख्य जोर ही गलत दिशा में है।”
असमानता घटाने के लिए अपेक्षित समता-मूलक उपायों की कोई चर्चा नहीं
हालांकि यह परियोजना कथित तौर पर भारत में गरीबी, भेदभाव और असमानता को दूर करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए लाई गई है, लेकिन पीढ़ी-दर–पीढ़ी चली आ रही सामाजिक व आर्थिक बाधाओं या स्कूली दायरे से बाहर छूट गए (आउट ऑफ स्कूल) बच्चों की समस्या के समाधान के
लिए समतामूलक उपायों के बारे में यह कोई
चर्चा नहीं करती। दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों एवं
भारतीय परिवेश के संदर्भ में पितृसत्तात्मकता एवं अन्य पिछड़े विचारों से जूझ रही लड़कियों की शिक्षा की बेहतरी के लिए भी
यह परियोजना कोई रास्ता नहीं सुझाती। ये भी तब जबकि स्कूली शिक्षा के दायरे से
बाहर 75 फीसदी बच्चे दलित, आदिवासी और मुस्लिम हैं। (https://scroll.in/article/729051/how-the-right-to-education-is-failing-the-very-children-it-was-meant-to-benefit)
ऑक्सफैम इंडिया में शिक्षा और असमानता की लीड विशेषज्ञ के बतौर कार्यरत और लंबे अरसे से शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत एंजेला तनेजा, ने कहा, "भारत की शिक्षा व्यवस्था बड़े पैमाने पर विषमताओं
से जूझ रहा है। परियोजना के लिए सफलता
का पैमाना तो यही होना चाहिए कि वह
गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को अपने अधिकार हासिल करने की राह दिखा पाये। यह परियोजना
जाति और लिंग आधारित
भेदभाव को खत्म करने या व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी संतमूलक उपायों के संदर्भ में कोई सार्थक
दृष्टि नहीं देता है। समता सूचकांकों के बरक्स सभी स्कूलों (सरकारी और निजी) का इक्विटी ऑडिट जैसे उपाय शायद पठन-पाठन में कुछ सकारात्मक साबित होते, लेकिन यह परियोजना इन जरूरी पहलुओं पर पूरी तरह खामोश है।“
गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझाए गए रास्ते कतई
कारगर नहीं
यह परियोजना मानकीकृत परीक्षण-आकलन पर कुछ ज्यादा ही जोर देती है और
छात्रों के मूल्यांकन के लिए विशेष रूप से पीसा (पीआईएसए यानी प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट, https://www.oecd.org/pisa/) जैसे अंतर्राष्ट्रीय लर्निंग असेसमेंट
प्रोग्राम की बात करती है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत में पठन-पाठन की प्रक्रिया मेँ सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है और इसके
लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए लेकिन शिक्षकों
की रोजमर्रा
की दिक्कतों को हल किए बगैर या शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव के सार्थक
तरीके अपनाए बिना शैक्षिक सुधार के कार्यक्रमों को थोप देने से बदलाव कैसे संभव
है। एक अहम बात ये भी है कि इस परियोजना को बनाते वक़्त शिक्षकों और शिक्षा से जुड़े अन्य नेटवर्क या मंचों
से भी कोई सलाह–मशवरा नहीं किया गया है।
राम पाल सिंह, अध्यक्ष, ऑल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन ने कहा, “स्टार्स परियोजना का डिज़ाइन दर्शाता
है कि शिक्षक समुदाय
से परामर्श
नहीं किया गया था। परियोजना का जोर शिक्षकों
और सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली
को सशक्त
बनाने पर होना चाहिए था न कि सिर्फ़
शिक्षकों का परीक्षण करने पर। शिक्षा में सुधार के नाम पर करदाताओं से प्राप्त राशि को प्रबंधन फर्मों
और निजी संस्थानों को लुटा देना आम जनता के हक में शिक्षा
व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं लाएगा।”
मित्ररंजन
मीडिया समन्वयक
राइट टू एजुकेशन फोरम
संपर्क : 9717965840
-
संपादक से अनुरोध :
संपूर्ण पत्र की प्रति संलग्न है।
ऋण विश्लेषण पढ़ने के लिए, कृपया देखें:
https://bit.ly/30HE9V5
और
जानकारी के लिए कृपया एंजेला तनेजा
(anjela@oxfamindia.org) से संपर्क करें।
नीचे उन व्यक्तियों और संगठनों के नाम दिए गए हैं जिन्होंने पत्र का समर्थन किया है:
हस्ताक्षरकर्ता:
1. शांता सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, एनसीपीसीआर
2. मनोज झा, सांसद, राज्यसभा- राष्ट्रीय जनता दल (बिहार)
3. जयति घोष, प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
4. रितु दीवान पूर्व निदेशक, अर्थशास्त्र विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय
5. आर गोविंदा- पूर्व वीसी, न्यूपा
6. नंदिनी सुंदर, प्रोफेसर, दिल्ली
विश्वविद्यालय
7. ज़ोया हसन- प्रोफेसर एमेरिटस, जेएनयू
8. बिदिशा पिल्लई, सीईओ, सेव
द चिल्ड्रन इंडिया
9. किरण भट्टी- सीनियर फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च
10. आर वेंकट रेड्डी, राष्ट्रीय संयोजक, एमवी फाउंडेशन
11. मोहन राव, पूर्व
प्रोफेसर, सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी
हेल्थ, जेएनयू
12. नंदिनी मांजरेकर, प्रोफेसर, टीआईएसएस, मुंबई
13. प्रवीण झा, प्रोफेसर, जेएनयू
14. सुकन्या बोस, सहायक प्रोफेसर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी
15. प्रो॰ अनीता रामपाल, दिल्ली विश्वविद्यालय
16. देविका सिंह, राइट टू अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट
17. अरविंद सरदाना, पूर्व निदेशक, एकलव्य
18. डॉ॰ मैक्सिन बर्नत्सेन, संस्थापक, प्रगति
शिक्षण संस्थान
19. संगीता चटर्जी, पोस्टडॉक्टोरल फेलो, जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय
20. शिवा शंकर, विजिटिंग
प्रोफेसर, IIT बॉम्बे
21. पूजा पार्वती, कंट्री मैनेजर, इंटरनेशनल बजट पार्टनरशिप
22. राधिका गोरूर, एसोसिएट
प्रोफेसर, डीकिन विश्वविद्यालय
23. डॉ॰ एनी कोशी, प्रिंसिपल, सेंट मैरी स्कूल, दिल्ली
24. डॉ. मनीष जैन, एसोसिएट प्रोफेसर, अंबेडकर विश्वविद्यालय
25. सिमंतिनी धुरु, निदेशक, एवी
अबेकस परियोजना
26. पद्मा वेलस्कर, पूर्व प्रोफेसर, टीआईएसएस, मुंबई
27. श्रीधरन नायर, निदेशक, परिवार
नियोजन संघ
28. योगेश वैष्णव, संस्थापक, विकास
संस्थान
29. डॉ॰ नित्या नंदा, निदेशक, काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट
(सीएसडी), नई दिल्ली
30. सोमा केपी, नेशनल
फैसिलिटेटर, मेकैम
31. मानबी मजूमदार, सामाजिक विज्ञान केंद्र, कलकत्ता में अध्ययन केंद्र
32. नलिनी जुनेजा, पूर्व प्रोफेसर, राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली
संगठनात्मक समर्थन
1. वादा ना तोड़ों अभियान (राष्ट्रीय)
2. राइट
टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम
3. नेशनल
कोएलिशन ऑफ एजुकेशन (NCE)
इंडिया, राष्ट्रीय
4. अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ (AIPTF), राष्ट्रीय
5. अखिल भारतीय माध्यमिक शिक्षक महासंघ (AISTF), राष्ट्रीय
6. ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टीचर्स ऑर्गनाइजेशन (AIFTO), नेशनल
7. एआईएफटीओ, राजस्थान
8. एआईएफटीओ, मध्य
प्रदेश
9. एआईएफटीओ, हिमाचल
प्रदेश
10. बृहन्मुंबई महापालिका शिक्षा सभा, महाराष्ट्र
11. केरल प्रदेश स्कूल शिक्षक संघ, केरल
12. ऑक्सफैम इंडिया, नेशनल
13. चाइल्ड एलायंस फॉर चाइल्ड राइट्स (IACR), नेशनल
14. भारतीय सामाजिक कार्य मंच, राष्ट्रीय
15. दलित मानवाधिकार पर राष्ट्रीय अभियान
16. राष्ट्रीय युवा समानता मंच, राष्ट्रीय
17. अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कर्मचारी महासंघ, राष्ट्रीय
18. विकलांग लोगों के लिए रोजगार को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय केंद्र
19. मोबाइल क्रेचेज, नेशनल
20. अखिल महाराष्ट्र प्रथमिक शिक्षा संघ, महाराष्ट्र
21. हिमाचल सरकार शिक्षक संघ, हिमाचल प्रदेश
22. हिमाचल प्रदेश प्राथमिक शिक्षक महासंघ, हिमाचल प्रदेश
23. मध्य प्रदेश सरकार प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षक संघ, मध्य प्रदेश
24. मध्य
प्रदेश शस्यक्या
प्रथमिक मधयमिक शिक्षा संघ, मध्य प्रदेश
25. स्वतंत्र शिक्षक संघ, मध्य प्रदेश
26. ऑल उत्कल प्राथमिक शिक्षक महासंघ, ओडिशा
27. झारखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक समूह, झारखंड
28. सामाजिक अभियान के लिए जन अभियान - आर्थिक समानता, हिमाचल प्रदेश
29. ओडिशा आरटीई फोरम, ओडिशा
30. महाराष्ट्र आरटीई फोरम, महाराष्ट्र
31. हिमाचल प्रदेश आरटीई फोरम, हिमाचल प्रदेश
32. मध्य प्रदेश लोक सुभगा साझा मंच, मध्य प्रदेश
33. स्कोर (स्टेट कलेक्टिव फॉर राइट टू एजुकेशन), उत्तर प्रदेश
34. पश्चिम बंगाल RTE फोरम, पश्चिम
बंगाल
35. चाइल्ड अलर्ट एलायंस, तमिलनाडु
36. ह्यूमन
राइट्स अलर्ट, मणिपुर
37. पीपुल्स वॉच, तमिलनाडु
38. शिक्षा का अधिकार फोरम, तमिलनाडु
39. बाल अधिकार सामूहिक, गुजरात
40. एजुकेशन
पॉलिसी इंस्टीट्यूट ऑफ बिहार, बिहार
41. भारत ज्ञान विज्ञान समिति (बीजीवीएस), राष्ट्रीय
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