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Happy Children

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Children at Dhapo Colony Slum

Friday, January 27, 2023

इस ज़मीं पर तो प्यार बिखरा है

इस ज़मीं पर तो प्यार बिखरा है 

धर्म के नाम पर सियासत में 
इतनी नफ़रत कहाँ से लाते हो
इस ज़मीं पर तो प्यार बिखरा है 
जिसको क़ुदरत1 ने ख़ुद सँवारा है 

ढलते सूरज पे इक नज़र डालो 
उसके दामन में अब्र2 का टुकड़ा 
महव-ए-हैरत3 हूँ, लाखों रंगों से 
खेलता है कि जैसे सारे रंग
अब बिखेरेगा, तब बिखेरेगा 
और हंगाम-ए-रंग-ओ-बू4 के तुफ़ैल5 
इन हवाओं में, इन फ़िज़ाओं में 
अम्न के सुर बिखरते देखोगे 
उसको देखो ज़रा नज़र भर कर

इक ज़रा ठहरो चाँद निकलेगा 
अपने दाग़ों को दूध से धो कर 
आसमाँ की बिसात पर देखो 
सारे तारों के नरम मोहरों को 
एक एक करके फिर सजाएगा 
और तुमसे करेगा सरगोशी6 
दिल ये ग़मगीन है अगर तो क्या 
रात संगीन7 है अगर तो क्या 
सुबह आएगी, नूर बिखरेगा 
खेलते खेलते सफ़र अपना 
मंज़िलों का पता बताएगा 

सुबहदम8 चल के घास पर देखो 
प्यार की धुन पे लाखों बूँदों को 
अम्न के गीत गाते पाओगे
और सबा9 पास से जो गुज़रेगी 
तुमको एहसास बस यही होगा 
‘जैसे कह दी किसी ने प्यार की बात’

बिखरे फूलों ने लाखों रंगों से 
सारे गुलशन को यूँ सजाया है 
जैसे कहते हों इक ज़रा सोचो 
इश्क़ की कोई हद नहीं होती 

बहते दरिया की नर्म मौजें हों 
या कि सहरा10 में रेत के ज़र्रे 
परबतों की हसीन वादी या 
बिखरी बिखरी से बर्फ़ की परतें 
झूमते गाते सारे झरने भी 
हमको पैग़ाम-ए-अम्न देते हैं 

और चाहो तो आँख बंद कर लो 
दिल की आवाज़ को सुनो, पैहम 
धड़कनें तुमको ये बताएँगी 
इस ज़मीं पर तो प्यार बिखरा है 

नफ़रतें बस सियासतों में हैं 
हर सियासत के ऐसे पहलू को 
दिल से अपने निकालना होगा 
अम्न के, आशिक़ी के पैकर11 में 
हर सियासत को ढालना होगा 

दिल्ली 
05.01.2023

1. क़ुदरत = प्रकृति, 2. अब्र = बादल, 3. महव-ए-हैरत = हैरत में, 4. हंगाम-ए-रंग-ओ-बू = रंग और बू का हंगामा, 5. तुफ़ैल = वजह से, 6. सरगोशी = धीमी आवाज़ में बात करना, 7. संगीन = सख़्त, पत्थर जैसी, 8. सुबहदम = सुबह के वक़्त, 9. सबा = अच्छी बहती हवा, 10. सहरा = रेगिस्तान, 11. पैकर = आकार

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