*मैं मणिपुर बोल रहा हूं...*
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गोलियों-बारूदों से तबाह हुए अपने
शहर में लब खोल रहा हूं, देशवासियों
मैं मणिपुर बोल रहा हूं।
मेरी पीड़ा सुन सको तो तुम्हें सुनाऊं,
अगर देख सको तो अपना जलता दिल दिखाऊं।
मेरे जिस आंगन में कभी चहचहाती थी
चिड़ियां, वहां आज गूंज रही है बंदूक
और गोलियां
जहां पहले सब मिलजुल कर रहते थे,
अब एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं,
ये सारे पैंतरे भाई को भाई से लड़ाने
वाली बीजेपी ने तराशे हैं
भाजपा की गंदी राजनीति की पोल
खोल रहा हूं, देशवासियों मैं मणिपुर बोल रहा हूं।
सैकड़ों बेकसूर लोगों को आंखों के
सामने मरता देख रहा हूं,
कितना अभागा हूं कि अपने हजारों
घरों को जलता देख रहा हूं
मेरे सामने रोज हजारों अपने लोग
अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं,
मगर हम उनको रोकने की हिम्मत तक
नहीं जुटा पा रहे हैं
अपनों की लाशें अपने हाथों तोल रहा
हूं, देशवासियों मैं मणिपुर बोल रहा हूं।
आखिर किससे कहूं, कहां जाऊं, कौन सुनेगा मेरा दर्द, किसे अपनी दास्तां सुनाऊं
सियासत की आग में मैं जल रहा हूं,
अपने खून को ही अपने जिस्मों पर मल रहा हूं
फूट डालने वालों पर कभी विश्वास मत करना,
तभी खुश रह पाओगे, मेरी सलाह को ठुकराया तो मेरी तरह पछताओगे।
मैं नफरत के सौदागरों पर भीतर से खौल रहा हूं, देशवासियों मैं मणिपुर बोल रहा हूं।